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 सी के मेहता की खास रिपोर्ट

विदित हो की गत मार्च 2020 में हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली सरकार ने 6th जेपीएससी से सबंधित हाईकोर्ट में लंबित मुद्दों व फैसलों को दरकिनार करते हुए जल्दीबाजी में पहले रिजल्ट दिया फिर चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति कराई ।सभी ने लगभग दो वर्षो से विभिन्न पदों पर सेवा दी ।और फिर 2022 में हाई कोर्ट का फैसला उन चयनित अभ्यर्थियों के उज्जवल भविष्य को एक झटके में ही खत्म कर दिया ।हाई कोर्ट के निर्देशानुसार मेरिट लिस्ट फिर से 12 मार्च 2022को जारी हुआ और टॉपर सहित 60 ऐसे प्रतियोगी छात्र मेरिट लिस्ट से बाहर हो गए जो पिछले बार मेरिट लिस्ट में शामिल थे और चयनित होकर विभाग में कार्यरत भी थे और वेतन का भी लाभ उठा रहे थे । अब जब नए मेरिट लिस्ट आने से ऐसे उम्मीदवारों की नौकरी दाव पर लग गई तो ये सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर किए जिसपर सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश अजय रस्तोगी और अभय ओका की बेंच ने आज सोमवार को सुनवाई की और हाई कोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए हाई कोर्ट के आदेश को रोक दिया तथा अपना पक्ष रखने के लिए सरकार और जेपीएससी को नोटिस जारी की ।इस मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च को अब होनी है सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके लिए राहत भरा है जो नए मेरिट लिस्ट से बाहर हो गए थे तथा उनके लिए परेशानी का सबब होगा जो इसमें टॉपर हुए या फिर शामिल हुए है । वैसे 6 th जेपीएससी का विवादो से पुराना नाता रहा है यह शुरू से ही विवादो में रहा है कभी उम्र सीमा को लेकर तो कभी पाठ्यक्रम को लेकर तो कभी रिजल्ट को लेकर । लगता है यह दुनिया का एक मात्र पीएससी का परीक्षा होगा जिसके पीटी के तीन बार रिजल्ट जारी हुए जितने प्रतिभागी मेंस का परीक्षा दिए उनमें से पांचवे भाग प्रतिभागी का ही रिजल्ट जारी हुआ । छठे जेपी बात की जाय तो इसके पीटी मेंस और इंटरव्यू लेकर कुल छः बार परीक्षा परिणाम जारी हुए। सरकार ने जैसे तैसे तो अपने कार्यकाल में एक जेपीएससी परीक्षा को पूरा करने का श्रेय लेने के लिए नियुक्ति पत्र दे दी पर यह कभी हाई कोर्ट तो कभी सुप्रीम कोर्ट का चक्कर लगाते फिर रहा है।

अब सवाल है सरकार और जेपीएससी जैसी संस्था के प्रति भरोसे का विश्वास का ।कितने ऐसे प्रतियोगी छात्र है जो अपना पूरा जीवन पीएससी की तैयारी में खपा देते है ।और स्थिति यह है जेपीएससी 6 साल में भी एक भी परीक्षा सही ढंग से पूरा नहीं कर पा रही है । मुझे लगता है की जेपीएससी की ज्यादातर एग्जाम विवादों के घेरे में है और वर्तमान हालात ऐसी है की नियुक्ति पत्र पाने और कुछ वर्ष नौकरी करने के के बावजूद भी कोई भरोसे के साथ नही कह सकता की मैं अब अपना सेवाकाल पूरा कर ही लूंगा। आखिर इतनी सारी विसंगतियां जो हो रही उसका जिम्मेवार कौन है आयोग या सरकार या खुद अभ्यर्थी । झारखंड में सरकारें बदलेगी ,नियोजन नीतियां बदलेगी ,पर नही बदलेंगी तो यहां के भोले भाले प्रतियोगी छात्रों की किस्मत ।आगे क्या होगा वक्त बताएगा लेकिन निकट भविष्य में सुधार की गुंजाइश कम ही है क्योंकि वर्तमान में भाषा और स्थानीय विवाद भी चरम पर है जो हर नियुक्ति को प्रभावित करने के लिए काफी है।

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