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हमारे सपनों का झारखंड : 25 वर्षों बाद भी अधूरा सपना

अलग झारखंड राज्य का गठन हुए अब 25 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। राज्य सरकार 25वें स्थापना दिवस की तैयारी जोर-शोर से कर रही है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या झारखंड अपने गठन के उद्देश्यों को पूरा कर सका है?

जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था, तब लोगों की उम्मीदें आसमान छू रही थीं। खनिज संपदा से परिपूर्ण इस धरती को लोग विकास, रोजगार और समृद्धि का प्रतीक मान रहे थे। परंतु आज हकीकत इसके विपरीत है — बेरोजगारी और पलायन बढ़ते जा रहे हैं, गरीबी और भ्रष्टाचार गहराते जा रहे हैं।

राज्य में उद्योग-धंधे लगने के बजाय नेता और अधिकारी अपनी सुविधाओं और विलासिता पर ध्यान दे रहे हैं। सड़क, बिजली और पानी की व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ भ्रष्टाचार का भी “विकास” हुआ है।

शिक्षा और रोजगार की स्थिति बेहद चिंताजनक है। JSSC, JTET और JPSC जैसी परीक्षाओं में बार-बार पेपर लीक, भ्रष्टाचार और लापरवाही से युवाओं का विश्वास डगमगा गया है। हजारों पद खाली हैं, फिर भी विभाग प्रभार में चल रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर, सरकार नवयुवतियों और महिलाओं को ₹2500 तथा वृद्ध महिलाओं को ₹1000 की सहायता देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान रही है, जबकि यह केवल चुनावी दिखावा साबित हो रहा है।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि झारखंड आंदोलन के वास्तविक सपूत — जिन्होंने इस राज्य के लिए संघर्ष किया, जेल गए, बलिदान दिए — आज भी सम्मान, पेंशन और आरक्षण के हक से वंचित हैं। चिन्हितीकरण आयोग में फर्जी आंदोलनकारियों को पैसे के बल पर लाभ दिया जा रहा है, जबकि असली आंदोलनकारी गरीबी और बीमारी से मर रहे हैं।

25वें स्थापना दिवस के जश्न के बीच यह प्रश्न गूंज रहा है —
“क्या यही था हमारे सपनों का झारखंड?”
जहां विकास के नाम पर भ्रष्टाचार, शिक्षा के नाम पर छल, और सम्मान के नाम पर उपेक्षा ही मिले?

निवेदक:
विजय ठाकुर
झारखंड आंदोलनकारी
जिला – गढ़वा, झारखंड

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Chandesh Raj

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