0 0
Share
Read Time:5 Minute, 5 Second

*“नवरात्रि और नारी सम्मान”*

करुणा, ममता और शक्ति की अथाह सागर है माँ जगतजननी जगदम्बा। माँ की महिमा को शब्दों में बाँधना असंभव है। भगवती की अलौकिक दिव्य अनुभूति तो केवल अनुभव योग्य है, बस ह्रदय से पुकारने की देर है। बालक किसी भी विषम परिस्थिति में सबसे पहले माँ का ही आह्वान करता है और माँ त्वरित उसकी पुकार सुन लेती है। शेरों वाली माँ भी अपनी कृपा अपने भक्तों पर प्रवाहित करती है। माता वैष्णोदेवी ने जिस भैरव का संहार किया उसकी ही पश्चाताप भावना पर माँ ने अपनी दया दिखाई। भक्तवत्सल माँ ने उसे क्षमा ही नहीं किया अपितु उसके दर्शन के बाद ही दर्शन पूर्ण होने का आशीर्वाद भी दे दिया। माँ तो सच में उदार स्नेह का ही अनूठा रूप है। करुणामयी माँ ऐसे ही जगतजननी रूप में सुशोभित होती है। आत्मबल दायनी माँ की प्रत्येक लीला अनूठी और अपरम्पार है।

नवरात्रि और नारी सम्मान एक-दूसरे से पूर्णतः सम्बंधित है। नवरात्रि हमें नारी सम्मान की ओर भी ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है, परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि नौ दिन माँ के जयकारे लगाने वाले, माँ से सुख और ऐश्वर्य की विनती करने वाले लोग अक्सर बहन-बेटियों को अपशब्द बोलते है। आडम्बर से सजी दुनिया में हम प्रतिमाओं की स्थापना करते है। कलश, घट स्थापना और कन्या पूजन करते है, पर कन्या के जन्म के अवसर पर विषाद से घिर जाते है। माँ के प्रति इतनी अगाध श्रृद्धा एवं आदर होते हुए भी हम एक सुरक्षित समाज का स्वप्न नहीं देख सकते जिसमे बहन-बेटियाँ एवं अबोध कन्याएँ अपने आप को सुरक्षित अनुभव कर सकें। हमारा ह्रदय क्यों कलुषित भावनाओं से ग्रसित हो गया है।

नवरात्रि के नौ दिन हम तामसिक भोजन का तो त्याग करते है, परन्तु अपनी गलत सोच को वैसा ही रखते है। हम उदारता के अच्छे भावों को अंकुरित नहीं करते। शायद हम केवल माता की आराधना, उपासना और साधना में औपचारिकता का निर्वहन करते है। हम इसी नारी सम्मान के लिए थोड़ा सा त्याग नहीं करते है। हमें उसके सुखों की कोई चिंता नहीं है। अभी भी कहीं-कहीं नारी शिक्षा से वंचित है। कहीं-कहीं नारी प्रताड़ना एवं तिरस्कार का शिकार है। नारी स्वयं की ख़ुशी के लिए अपने कुछ क्षण हर्ष-उल्लास से नहीं जी सकती। कहीं-कहीं नारी सामजिक बेड़ियों में जकड़ी हुई नजर आती है। उन्नत समाज के निर्माण में भी हम सामजिक विसंगतियों को दूर नहीं कर पा रहे है। देवी की संज्ञा देकर उसे काम करने की मशीन समझा जा रहा है और उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और अभिलाषाओं का दमन कर रहे है। माता को पूजने वाले समाज में नारी अपने आप को असुरक्षित क्यों महसूस कर रही है। क्यों हमारे समाज की विडम्बना ज्यों की त्यों बनी हुई है। प्रभु तो स्वयं ही देवी के साथ ही अपनी पूर्णता प्रदर्शित करते है, तो क्यों वह शक्ति स्वरूपा कहीं-कहीं संत्रास, घुटन और दमन का शिकार है।

देश और समाज के प्रबुद्धजन क्यों नारी विकास, उन्नयन और उत्थान को प्रबलता नहीं दे पा रहे है। हमें अपनी सोच को उत्कृष्ट करना होगा और नारी को एक सुरक्षित एवं सम्माननीय समाज देना होगा। महिलाओं पर अत्याचार, अभद्र व्यवहार और शोषण को समाप्त करना होगा। नारी हित में सामाजिक चेतना को जाग्रत करना होगा। माता की स्तुति हमें नारी के प्रत्येक स्वरुप में उसकी गरिमा, निष्ठा को संवर्धित करने की प्रेरणा देती है। इस नवरात्रि भी हम करुणामयी माता से प्रार्थना करेंगे कि वे हमारे समाज में व्याप्त तिमिर का विनाश कर नारी के सम्मान एवं सुरक्षा के सूरज को देदीप्यमान कर दें। जय मातादी।

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*

 1,413 total views,  2 views today

About Post Author

Admin Garhwa Drishti

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *