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विशुनपुरा संवाददाता सुनील कुमार की रिपोर्ट

प्रखंड के विभिन्न गांव में भू-जल स्तर गिरावट आने के बाद धान का बिछड़ा, मकई, तिल, अरहर सूखने के कगार पर है। किसान अपने खेतों में पड़ी दरार को देखकर काफी परेशान दिख रहे हैं। इस वर्ष भी किसानों को सूखे की मार की आशंका सता रही है। एक तरफ भीषण गर्मी से चारों ओर लोग परेशान हैं, दूसरी ओर भू-जलस्तर में गिरावट आने से पेयजल की विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। नदी, नाला, तालाब, कुंवा व चापाकल आदि सूखा पड़ा है। स्थिति यह है कि पेयजल के लिए लोगों को भटकना पड़ रहा है। खेती के लिए पानी की व्यवस्था करना किसानों के लिए समस्या बनी हुई है। लोग कहते हैं सावन में बारिश से खेत पानी से भर जाते हैं, और किसानों की उम्मीदें हरियाली से, लेकिन प्रखंड में किसानों की आस्था अब खंडित होने लगी हैं। अन्नदाता का भरोसा बादलों पर से डगमगाने लगा है। ऐसा लग रहा है जैसे इस बार भी बादलों ने खेत के बदले किसानों की आंखों में बरसात की है. फिलहाल बारिश के आसार दूर -दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं जिससे किसान परेशान है।आज धरती के भगवान किसान के मायूस चेहरा देख कर दिल सहम गया। वर्षा कम होने के कारण धान के बिचड़ा भी सुख रहा है, अपने ही खेत पर घूमता एक किसान अपने खेत में किए हुवे धान के बिचड़ा को देख कर मायूस होकर वंही फुट फुट कर रोने लगे। सारंग पंचायत के जतपुरा के किसानों ने बताया की 1966-67 के अकाल को झेला है उन्हें पुनः उसकी याद सताने लगी है।
आर्द्रा नक्षत्र, आषाढ़ और अब सावन भी बीतने वाला है अभी तक वर्षा नही के बराबर हुई है, दिन में चिलचिलाती धुप व् उमस भरी गर्मी से पूरा जनजीवन तबाह है। वर्षाभाव में खेतो से धूल उड़ रही है, सारी भूमि बंजर सी हो गयी है ऐसी स्थिति में प्रकृति की रुख भांपकर किसानों के बच्चे रोजी-रोटी की तलाश में अन्य प्रदेशों की ओर पलायन शुरू कर दिए हैं।

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