Read Time:7 Minute, 6 Second




*दवा व्यवसाय जीवन रक्षा से जुड़ा है, इसकी पवित्रता बनाए रखें : एसडीएम*
*गैर-लाइसेंसी दवा दुकानों पर कार्रवाई हो : केमिस्ट एसोसिएशन*
*चिकित्सकों की लिखावट, डिस्काउंट पर गैर-मानक दवाओं की बिक्री और औषधि विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे मुद्दे*
गढ़वा। सदर अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार के नियमित कार्यक्रम “कॉफी विद एसडीएम” के अंतर्गत बुधवार को ड्रगिस्ट एवं केमिस्ट एसोसिएशन के सदस्यों और स्थानीय दवा व्यापारियों के साथ संवाद आयोजित किया गया। बैठक में व्यापारियों ने अपने व्यवसाय से जुड़ी समस्याएँ, सुझाव और जनहित के मुद्दे विस्तार से रखे।
बैठक में दवा व्यापारियों ने कहा कि वे जीवन-रक्षा से जुड़े पवित्र व्यवसाय से जुड़े हैं, किंतु कई बार औषधि विभाग की अनावश्यक जांच, नयी नयी गैर लाइसेंसी दुकानें खुलना और चिकित्सकों की अस्पष्ट लिखावट जैसी कई परेशानियां होती है। उन्होंने मांग की कि डॉक्टरों को प्रिंटेड या स्पष्ट अक्षरों (Capital Letters) में दवा लिखने का निर्देश जारी किया जाए, ताकि मरीजों और विक्रेताओं दोनों को सुविधा हो।
कई व्यापारियों ने आरोप लगाया कि औषधि विभाग के कुछ अधिकारी निरीक्षण के दौरान अनुचित दबाव डालते हैं, जिससे सम्मानजनक व्यापारिक माहौल प्रभावित होता है।
गैर-मानक दवाओं की बिक्री और डिस्काउंट के नाम पर भ्रामक विज्ञापन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की मांग भी उठी।
*बैठक में रखे गए प्रमुख बिंदु एवं वक्तव्य-*
रघुवीर प्रसाद कश्यप ने कहा कि कई बार दूरदराज़ क्षेत्रों में जीवनरक्षक परिस्थिति में बिना प्रिस्क्रिप्शन दवा देनी पड़ती है। ऐसे दुर्लभ मामलों में कठोर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दुकानों द्वारा मनमाना डिस्काउंट देकर कम गुणवत्ता की दवाएँ बेची जाती हैं, जिससे न केवल मरीजों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है बल्कि ईमानदार व्यापारियों की साख पर भी असर पड़ता है।
सुरेन्द्र कश्यप ने कहा कि जनऔषधि केंद्रों में सिर्फ़ जनरिक दवाएँ रखी जानी चाहिए, किंतु सरकारी अस्पताल स्थित केंद्रों में ब्रांडेड दवाओं की बिक्री की जा रही है। उन्होंने इस पर कार्रवाई की मांग की।
संतोष जायसवाल ने कहा कि लाइसेंस लेने से लेकर दुकान संचालन तक, दवा व्यवसायियों को कई स्तरों पर आर्थिक शोषण का सामना करना पड़ता है। उन्होंने इस शोषण से मुक्ति हेतु प्रशासनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता बताई। इस पर एसडीएम ने सभी से लिखित शिकायत की मांग की।
अशोक कुमार गुप्ता ने बताया कि कुछ माह पूर्व टाउन हॉल में जिला प्रशासन द्वारा जो नियम-कानून बताए गए थे, उनका सभी दवा विक्रेता पालन कर रहे हैं। कोई भी दवा विक्रेता ऐसी दवा की बिक्री नहीं कर रहा जो नियमानुसार आपत्तिजनक हो।
दीपक तिवारी ने कहा कि गरीब वर्ग के लोग डॉक्टर के पास नहीं जा पाते और छोटे-मोटे रोगों में सीधे मेडिकल स्टोर से सस्ती दवा खरीदते हैं। ऐसे मामलों में बिना प्रिस्क्रिप्शन दवा देना अपराध नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि डिस्काउंट के नाम पर बोर्ड लगाने वाले विक्रेता नियम विरुद्ध कार्य कर रहे हैं।
संतोष दुबे ने कहा कि जिले में कुछ अपात्र लोगों को भी मेडिकल स्टोर का लाइसेंस मिल गया है, जिससे नियमपूर्वक दुकान चलाने वाले व्यवसायियों की छवि पर असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि गैर-लाइसेंसी दुकानों की संख्या लाइसेंस प्राप्त दुकानों से अधिक है, जिन पर शीघ्र रोक लगाई जानी चाहिए।
इस पर एसडीएम संजय कुमार ने कहा कि गैर-लाइसेंसी दुकानों को दवा की आपूर्ति लाइसेंसधारी दुकानदारों द्वारा ही की जाती है, अतः पहले चरण में सभी लाइसेंसधारी विक्रेताओं को जागरूक होना होगा कि वे बिना लाइसेंस दुकानों को दवा न बेचें।
नंदकिशोर श्रीवास्तव ने इस संवाद कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि यह उनके जीवन में पहला अवसर है जब किसी प्रशासनिक अधिकारी ने इस व्यवसाय से जुड़ी समस्याओं को सुनने के लिए स्वयं आमंत्रित किया है।
मौके पर उपस्थित औषधि निरीक्षक कैलाश मुंडा ने दवा नियंत्रण से संबंधित विधिक प्रावधानों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने देशभर में चर्चा में रहे कफ सिरप विक्रय नियमों में हाल में हुए बदलावों की जानकारी दी और बताया कि औषधि विभाग पर लगाए गए शोषण के आरोप सही नहीं हैं; विभाग केवल अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है।
बैठक के अंत में एसडीएम संजय कुमार ने कहा कि प्रशासन दवा व्यापारियों की समस्याओं के समाधान के लिए संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों द्वारा स्पष्ट लिखावट में दवा लिखने, स्थानीय औषधि विभाग की पारदर्शिता बढ़ाने और गैर-मानक दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।


