सी के मेहता की रिपोर्ट
विदित हो की गत मार्च 2020 में हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली सरकार ने 6th जेपीएससी से सबंधित हाईकोर्ट में लंबित मुद्दों व फैसलों को दरकिनार करते हुए जल्दीबाजी में पहले रिजल्ट दिया फिर चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति कराई ।सभी ने लगभग दो वर्षो से विभिन्न पदों पर सेवा दी ।और आज का हाई कोर्ट का फैसला उन चयनित अभ्यर्थियों के उज्जवल भविष्य को एक झटके में ही खत्म कर दिया । वैसे 6 th जेपीएससी का विवादो से पुराना नाता रहा है यह शुरू से ही विवादो में रहा है कभी उम्र सीमा को लेकर तो कभी पाठ्यक्रम को लेकर तो कभी रिजल्ट को लेकर । लगता है यह दुनिया का एक मात्र पीएससी का परीक्षा होगा जिसके पीटी के तीन बार रिजल्ट जारी हुए , मेंस परीक्षा में जितने विद्यार्थी शामिल हुए उनके लगभग पांचवे भाग विद्यार्थी का ही रिजल्ट जारी हुआ ।सरकार ने जैसे तैसे अपने कार्यकाल में जेपीएससी परीक्षा को क्लियर करने का श्रेय लेने के लिए नियक्ति पत्र तो दे दी पर आज उनकी नौकरी छीन गई।
अब सवाल है सरकार और जेपीएससी जैसी राज्य की सबसे बड़ी संस्था के प्रति अभ्यर्थियों के विश्वास का भरोसे का ।सरकार और इतनी बड़ी संस्था के इस तरह के निर्णय क्रियाविधि व अन्त में हाईकोर्ट का निर्णय सब के सब चौकाने वाले हैं।इतनी बड़ी गलती के आखिर दोषी कौन चयनित अभ्यर्थी या जेपीएससी या फिर सरकार ।आज की हालत ऐसी है झारखंड में की कौन कब तक नौकरी करेगा कहा नहीं जा सकता ।यहा सरकार बदलेगी नियुक्ति नियमावली बदलेगी अगर कुछ नही बदलेगी तो सिर्फ झारखंड के भोले भाले प्रतियोगी छात्रों का किस्मत । आगे क्या होगा वक्त बताएगा ।पर फिलहाल सुधार की गुंजाइश कम ही है क्योंकि अभी भी भाषाई मुद्दा चरम पे है जो नियुक्ति प्रक्रिया में बाधक हो सकती है।
220 total views, 2 views today