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कथा के पहले दिन प्रपन्नाचार्य जी ने मंगलाचरण के साथ साथ रामचरित मानस की विशेषता एवम लोकप्रियता , भक्ति के तरीके, संतो एवम असंतों के प्रकृति पर विशेष रुप से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भगवान से भी बढ़ कर भगवदनाम की महिमा है। भगवान ने तो कुछ ही लोगों का उद्धार किया लेकिन भगवदनाम आज भी करोड़ों लोगों के उद्धार करने मे सहायता कर रहा है। कलयुग मे नाम जप की बड़ी महिमा है। रामचरितमानस को समझने के लिए पहले मानस या मन को शुद्ध कर अपने चरित्र को पवित्र करें तभी आप इसे भलीभांति समझ सकते हैं। भगवद प्राप्ति के लिए आचरण की सरलता एवम मन की निर्मलता का होना अनिवार्य है। मन मे छल कपट रखकर कभी भगवान को नहीं पाया जा सकता है। यही कारण है कि कथा तो हजारों लोग सुनते है लेकिन कथा कुछ ही लोगों के पास पहुंच पाती है । आगे प्रपनाचार्य जी ने बताया कि बिभिन्न रामायणो मे सर्वाधिक लोकप्रिय रामचरित मानस है
जिसे अवधी भाषा मे लिख कर तुलसीदास ने इसे सरल,सुग्राह्य एवम आसानी से हृदयंगम करने योग्य बनाया। विषयों के विलास से विरक्ति होने पर ही भक्ति उत्पन्न होती है। और इससे भगवान मे अनुराग उत्पन्न होता है। गोस्वामी जी ने मानस के प्रारम्भ मे ही गणेश जी,सरस्वती जी, भवानी शंकर के साथ साथ गुरुओं, साधु संतो यहां तक कि असंतों की भी वन्दना की है। असन्त भी भक्ति को दृढ़ रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।कथा समिति के अध्यक्ष चन्दन जायसवाल ने लगातार तीसरा बार कथा आयोजन के लिए सभी कार्यकर्ताओं, मुहलावासियों एवम सहयोग करने वालों धर्मानुरागियों के साथ साथ महाराज जी एवम उनके पूरे टीम के प्रति ह्रदय से आभार जताया।
उपस्थित -गौरी शंकर,मनीष कमलापुरी,नीतेश कुमार गुड्डू,संजय अग्रहरि,दिनानाथ बघेल,जयशंकर राम,बिकास ठाकर,शान्तनु केशरी,रंजित कुमार,कृष केशरी,राजा बघेल,पीयूष कुमार,गौतम शर्मा,शुभम कुमार,गोलु बघेल,सुदर्शन मेहता,दुर्गा रंजन,अनिकेत गुप्ता,रोहीत कुमार,ब्रजेश कुमार,पवन कुमार,गुडु हरी




