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सी  के मेहता             

राजनीति विश्लेषक सह दृष्टि न्यूज रिपोर्टर

वर्तमान सरकार द्वारा हाल के दिनों में लिए गए फैसलों से लगता है की सरकार लोगो को मुद्दों से भटकाने के लिए एक अलग चाल चली जो क्षेत्रिय भाषा से जुड़ा है लेकिन यही चाल अब सरकार की गले की फांस बनते दिख रही है वर्तमान में जो परिस्थितियां पैदा हो चुकी है वह सरकार के लिए ही संकट बनते दिख रही है विरोध इतना होगा हेमंत सरकार इसकी कल्पना नहीं की होगी । हेमंत सरकार ने अपनी नाकामियों को छिपाने और अपनी पकड़ वाले क्षेत्रों मेंअपनी लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए मगही भोजपुरी अंगिका भाषा विवाद खड़ा किया जो सोची समझी साजिश का हिस्सा था ।साथ ही इन भाषाओं को दमनकारियो का भाषा बताया और इन भाषाओं को क्षेत्रिय भाषा की सूची से बाहर कर दिया हालाकि इसका विरोध विपक्ष के साथ- साथ गठबंधन सरकार के घटक दलों व पार्टी के सदस्यों द्वारा भी हुई । जब सरकार के ऊपर चौतरफा दबाव बना तो मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं के लिए इन भाषाओं को शामिल कर लिया जबकि स्नातक स्तर की परीक्षाओं के लिए इन भाषाओं को सूची से बाहर कर दिया साथ ही हिंदी को भी क्षेत्रिय भाषा की सूची से हटा दिया और बांग्ला ,उड़िया उर्दू आदि भाषाओं को शामिल कर लिया अब सवाल यह है की क्या क्षेत्रिय भाषा की सूची में भाषाओं को शामिल करने का कोई मापदंड नहीं ?जब जिसकी सरकार बनेगी उसके हिसाब से भाषाएं हटते जुड़ते रहेंगे? क्या आपने जिन भाषाओं को क्षेत्रिय भाषा में शामिल किया और हटाया उसका विश्लेषण किया था? और अगर किया था तो उनमें अंतर था ?यदि नही तो फिर किस आधार पर जोड़ा और हटाया ? और यदि आप मगही भोजपुरी अंगिका को बाहरी और दमनकारियों की भाषा बोलते है तो क्या मानते है की इन भाषाओं को बोलने वाले सभी लोग दमनकारी और बाहरी है? और कोई भी झारखंडी समुदाय इन भाषाओं को नही बोलता है।अगर नही मानते तो फिर स्नातक स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में मगही भोजपुरी अंगिका हिंदी को क्षेत्रिय भाषाओं में शामिल क्यों नही की गई? और जिन भाषाओं को क्षेत्रिय भाषा के रूप में दर्जा दी गई उनके लिए झारखंड के स्कूलों में क्या व्यवस्था थी या है या करने की योजना है अगर नही है तो इस भाषी क्षेत्र के लोगो समानता का अवसर कैसे मिलेगा क्या झारखंड के आदिवासी शोषित दलित वर्ग इन भाषाओं को नही बोलते ?अगर बोलते है तो क्या उनके हित का ध्यान रखा जा रहा है? क्या झारखंड भाषा के आधार पर अलग हुआ है अगर नही तो फिर भाषा पर विवाद क्यों ?सच तो ये है की झारखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाषा के आधार पर बहुत अधिक विविधता है इसलिए यहां सभी भाषा को समान रूप से सम्मान देना चाहिए इन तमाम सवालों को लेकर एक सड़क पर प्रदर्शन और अपने मांग के समर्थन में झारखंड बंद कर रहा है तो दूसरा गुट मगही भोजपुरी अंगिका को हटाने और झारखंड बंद के विरोध में प्रदर्शन कर रहा है जिससे भाषाई आधार पर झारखंडियों में वैमनस्य और मतभेद का खतरा अधिक हो गया है भविष्य में चाहे जो भी हो वर्तमान की परिस्थिति भयावह है और यह सब सरकार के द्वारा ली गई गलत निर्णयों का ही परिणाम है।

सवाल यह है की क्या क्षेत्रिय भाषा की सूची में भाषाओं को शामिल करने का कोई मापदंड नहीं ?जब जिसकी सरकार बनेगी उसके हिसाब से भाषाएं हटते जुड़ते रहेंगे? क्या आपने जिन भाषाओं को क्षेत्रिय भाषा में शामिल किया और हटाया उसका विश्लेषण किया था? और अगर किया एक अलग चाल चली जो क्षेत्रिय भाषा से जुड़ा है लेकिन यही चाल अब सरकार की गले की फांस बनते दिख रही है वर्तमान में जो परिस्थितियां पैदा हो चुकी है वह सरकार के लिए ही संकट बनते दिख रही है विरोध इतना होगा हेमंत सरकार इसकी कल्पना नहीं की होगी । हेमंत सरकार ने अपनी नाकामियों को छिपाने और अपनी पकड़ वाले क्षेत्रों मेंअपनी लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए मगही भोजपुरी अंगिका भाषा विवाद खड़ा किया जो सोची समझी साजि आधार पर जोड़ा और हटाया ? और यदि आप मगही भोजपुरी अंगिका को बाहरी और दमनकारियों की भाषा बोलते है तो क्या मानते है की इन भाषाओं को बोलने वाले सभी लोग दमनकारी और बाहरी है? और कोई भी झारखंडी इन भाषाओं को नही बोलता है अगर नही मानते है तो फिर इन भाषाओं को स्नातक स्तर की परीक्षाओं में इनको जगह क्यों नहीं दी गई ?और जिन भाषाओं को क्षेत्रिय भाषा के रूप में शामिल किया गया उनकी पढ़ाई के लिए राज्य के स्कूलों में क्या प्रबंध है या किया गया है ?और नही किया गया तो इस भाषी लोगों को सरकार रोजगार में समानता का अवसर कैसे प्रदान करेगी ?क्या झारखंड भाषा के आधार पर अलग हुआ था हकीकत यह है इस छोटे से राज्य में भाषा को लेकर जितनी विविधता है अन्य किसी राज्य में नही फिर भाषा को लेकर विवाद क्यों सरकार को कभी क्षेत्रिय भाषा को समान रूप से सम्मान देना चाहिए ये तमाम सवालों को लेकर परेशान एक गुट आंदोलन कर रहे है लोग तो दूसरा गुट मगही भोजपुरी अंगिका को हटाने को लेकर आंदोलन कर रहा है जो लोग इस गुट शामिल है वे मगही भोजपुरी अंगिका को बिहारी भाषा बता आंदोलन कर रहा है वर्तमान की परिस्थिति ऐसी है की एक गुट अपनी मांग के समर्थन में आंदोलन और झारखंड बंद करा रहा है तो दूसरा गुट इसके विरोध में सड़क पर उतर रहा है भविष्य में चाहे जो भी वर्तमान की परिस्थिति भयावह है और ये सब झारखंड सरकार की फैसलों और निर्णय का ही परिणाम है ।

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