गढ़वा में अपनी सेवा देगें गढ़वा के नए डीसी रमेश घोलप। जिन्होंने गुजारा था गरीबी के मुसीबत भरे पल। बचपन में बेची थी मां के साथ चूड़ियां और किए थें अपने पापा की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान में काम।
एक सामाजिक और प्रेरणाश्रोत IAS रमेश घोलप जिनकी जिंदगी संघर्षों और परिश्रम युक्त रहा। जिन्होने गरीबी को काफ़ी करीबी से देखा। गढ़वा दृष्टि को गर्व और खुशी है कि इनके बारे में कुछ संदेश आपके करीब पहुंचा रहा है।
महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के वारसी तहसील स्थित एक छोटे से गांव महागांव में जन्मे रमेश घोलप आज भारतीय प्रशासनिक सेवा का एक जाना-माना चेहरा हैं। दो वक्त की रोटी के लिए माँ-बेटे दिनभर चूड़ी बेचते। पिता की एक छोटी सी साइकिल रिपेयर की दूकान थी, मुश्किल से एक समय का खाना मिल पाता था। न खाने के लिए खाना, न रहने के लिए घर और न पढ़ने के लिए पैसे, इससे अधिक संघर्ष की और क्या दास्तान हो सकती?
रमेश अपने माँ संग मौसी के इंदिरा आवास में ही रहते थे। संघर्ष का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। साल 2005 में जब वो बारहवीं क्लास की परीक्षा दे रहे थे उसी समय उन्हें उनके पिता के निधन की खबर मिली थी। बाद में रमेश घोलप ने इस परीक्षा में 88.5 प्रतिशत अंक हासिल किये थे।
रमेश ने डी.एड किया ताकि वे शिक्षक बन सके और अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सकें। साल 2009 में वे बतौर शिक्षक काम करने लगे थे। शिक्षक की नौकरी करते हुए उन्होंने UPSC की तैयारी का मन बनाया। इसके बाद 2010 में टीचर की नौकरी छोड़ कर UPSC Exam की तैयारी शुरू की। साल 2012 में रमेश घोलप ने यूपीएससी की परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की थी।
2012 में रमेश घोलप ने 287वीं रैंक के साथ झारखंड कैडर के आईएएस अफसर बन गए।
इनकी सरलता और सालीनता ने लोगो के दिलों में प्यार बनाए हुए हैं।
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